Saturday, November 21, 2009

ताज नहीं, सारी दुनिया का दिल दहलाने आए थे

ताज नहीं, सारी दुनिया का
दिल दहलाने आए थे,
पाकिस्तानी फिर से अपनी
जात दिखाने आए थे ।

लोग चले थे गांव-देश की
माटी की सुधि लाने को,
किसे पता था वो निकले हैं
मिट्टी में मिल जाने को ।
इंतजार था अपने घर की
गाड़ी में चढ़ जाने का,
तड़-तड़-तड़-तड़ मौत आ गई
यम के घर ले जाने को ।

बेकसूर-निर्दोषों पर वे
कहर ढहाने आए थे ।
पाकिस्तानी फिर से अपनी
जात दिखाने आए थे ।

ए.के.47 जब गरजी
हर मजहब का खून बहा,
किसी के मुंह से निकला अल्ला
और किसी ने राम कहा ।
वीटी,ताज,नरीमन हाउस
एक रंग में नहा उठे,
लहू बहा सबका धरती पर
कहीं न कोई भेद रहा ।

सच पूछो तो भारत मां का
खून बहाने आए थे ।
पाकिस्तानी फिर से अपनी
जात दिखाने आए थे ।

खून बहे मां का तो
बेटा कैसे देखे खड़े-खड़े,
झिल्लू यादव छीन राइफल
शैतानों से जूझ पड़े ।
उनकी हिम्मत देख साथियों
की भी जब हिम्मत जागी,
भाड़े के टट्टू तुरंत ही
हुए वहां से भाग खड़े ।

ज़िंदादिल जुनून से कुछ
कायर टकराने आए थे ।
पाकिस्तानी फिर से अपनी
जात दिखाने आए थे ।

लड़ा सामने से वह जब-जब
उसको मिली करारी हार,
इसीलिए करता है अब वह
छुप करके पीछे से वार ।
दहशतगर्दी के आलम में
डरे-डरे से हम बैठे,
बिना नियम का युद्ध हो रहा,
बच्चों-बूढ़ों का संहार ।

बुरा न मानो बेहोशी से
हमें जगाने आए थे ।
पाकिस्तानी फिर से अपनी
जात दिखाने आए थे ।

सागर की सरहद पर बैठा
गद्दारों का डेरा है ,
चप्पे-चप्पे को आतंकी
एजेंटों ने घेरा है ।
वरना कैसे यहूदियों के
घर का पता उन्हें चलता,
जाहिर है दुश्मन के घर में
बैठा कोई मेरा है ।

तभी तो सागर के रस्ते से
सेंध लगाने आए थे ।
पाकिस्तानी फिर से अपनी
जात दिखाने आए थे ।

जोर-जोर से शोर मचाया
हिंदू दहशतगर्दी का,
चालाकी से ध्यान बंटाया
उसने खाकी वर्दी का ।
प्रज्ञा, पांडे और पुरोहित
के तारों में उलझी थी,
हुई शिकार स्वयं एटीएस
जेहादी बेदर्दी का ।

बुनकर जाल हमारे घर में
हमें फंसाने आए थे ।
पाकिस्तानी फिर से अपनी
जात दिखाने आए थे ।

दहशतगर्दी के कारण ही
हम आपस में मरते हैं ।
हिंदू-मुस्लिम एक-दूसरे
पर टिप्पणियां करते हैं ।
संग समय के घाव पुराना
जब-जब भरने लगता है,
ये दहशतपसंद आ करके
नया घाव फिर करते हैं ।

दो कौमों के बीच फासला
और बढ़ाने आए थे ।
पाकिस्तानी फिर से अपनी
जात दिखाने आए थे ।

साठ बरस की आजादी पर
भारी थे वे घंटे साठ,
सच्चे भारतवासी हो तो
मन में बांधो अपने गांठ ।
सफल न होने देंगे साजिश
भारत में गद्दारों की,
कसम शहीदों की है तुमको
इस घटना से सीखो पाठ ।

मिटा के रखेंगे उनको
जो हमें मिटाने आए थे ।
पाकिस्तानी फिर से अपनी
जात दिखाने आए थे ।

( एक रिपोर्टर के रूप में 26 नवंबर , 2008 के आतंकी हमले की लगभग सभी घटनाओं को प्रत्यक्ष देखने और अनुभव करने के बाद यह कविता मैंने लिखी थी । इसका प्रथम पाठ फैजाबाद की नाका मुज़फरा स्थित हनुमान गढ़ी के कवि सम्मेलन में 16 दिसंबर,2008 को किया गया था )

Friday, October 23, 2009

घर का भेदी

लंका ढाने के लिए भेदी है बदनाम,
भला विभीषण क्या करे जब कर्ता श्रीराम ।
जब कर्ता श्रीराम फार्मुला है यह देसी,
अक्सर जिसको अपना लेते हैं कांग्रेसी ।
महाराष्ट्र में बजवाया फिर अपना डंका,
राज ठाकरे से ढहवा चाचा की लंका ।

Friday, May 29, 2009

कला चिपकने की

देखो फिर से चल पड़ी मनमोहन सरकार,
कुछ अपने एमपी मिले कुछ ले लिये उधार ।
कुछ ले लिए उधार मिल रही खूब बधाई,
मनमोहन के चेहरे पर छाई तरुणाई ।
कला चिपकने की मनमोहन जी से सीखो,
वरना बन अडवाणी अपना रस्ता देखो ।
- ओमप्रकाश तिवारी

Friday, May 1, 2009

मुश्किल है मतदान

गरियाना सरकार को लगे बड़ा आसान,
मतदाताओं के लिए पर मुश्किल मतदान ।
पर मुश्किल मतदान गया कितना समझाया,
फिर भी वोटर रो-रो कर ही बाहर आया ।
जब आता ही नहीं स्वयं का भाग्य बनाना,
बंधु व्यर्थ है तब सरकारों को गरियाना ।
- ओमप्रकाश तिवारी

Thursday, April 30, 2009

बाहुबली

एक अर्ज है आपसे हो गुस्ताखी माफ,
राजनीति से कीजिए बाहुबली को साफ ।
बाहुबली को साफ पाक हो जाए धरती,
जीत सकें न वो जिनसे जनता है डरती ।
दल कोई भी हो मगर सब जन पहुंचें नेक,
जाने दें चौपाल में बाहुबली न एक ।
- ओमप्रकाश तिवारी

Wednesday, April 29, 2009

पप्पी-झप्पी

पप्पी-झप्पी न चले माया के दरबार,
जाओगे बेकार में सेंट्रल कारागार ।
सेंट्रल कारागार पड़ेगा मरना भूखा,
टाडा से भी सख्त बहनजी का रासुका ।
झेल चुके हैं वरुण जहां माया की झप्पी,
कहां चलेगी उस प्रदेश में तेरी पप्पी ।
- ओमप्रकाश तिवारी

Monday, April 27, 2009

हफ्ताखोर

हफ्ता थे जो मांगते मांग रहे हैं वोट,
छीना करते नोट थे बांट रहे अब नोट ।
बांट रहे अब नोट चाहते बनें विजेता,
कुछ भी ले लो लेकिन इन्हें बना दो नेता ।
राह पुरानी पकड़ेंगे फिर रफ्ता - रफ्ता,
चुनकर आने पर भी ये मांगेंगे हफ्ता ।
- ओमप्रकाश तिवारी

महंगाई

कोई लुभाए धर्म तो कोई रिझाए जात,
कोई करता न दिखे महंगाई की बात ।
महंगाई की बात गई जो रोटी छीनी ,
चौंसठ में है दाल और चौबिस में चीनी ।
कुकिंग गैस पर पीएम की पत्नी भी रोई,
फिर भी इस मुद्दे पर चर्चा करे न कोई ।
- ओमप्रकाश तिवारी

Sunday, April 26, 2009

अब तो लो विश्राम

गाते हैं सरदार जी नया आजकल राग,
अलादीन का लग गया उनके हाथ चिराग ।
उनके हाथ चिराग कहें यदि चुनकर आया,
अर्थव्यवस्था की पलटूं सौ दिन में काया ।
पांच बरस से यही आ रहे हो समझाते,
अब तो लो विश्राम रामधुन गाते-गाते ।
- ओमप्रकाश तिवारी

Saturday, April 25, 2009

आचारसंहिता

आई जब से संहिता लागू है आचार,
डीएम साहब बन गए पूरे थानेदार ।
पूरे थानेदार हिल रही उनसे दिल्ली,
नेताजी भी बने हुए हैं भीगी बिल्ली ।
लेते रोज हिसाब जोड़कर पाई-पाई,
प्रत्याशीगण कहें याद अब नानी आई ।
- ओमप्रकाश तिवारी

Friday, April 24, 2009

समोसे में आलू

जनता ने जब से चखा है विकास का स्वाद,
नेता रूपी मसखरे लगते अब बेस्वाद ।
लगते अब बेस्वाद हो गई जनता चालू,
लगे उसे स्वादिष्ट समोसा भी बिन आलू ।
जिनके कारण नाच रही अब तक निर्धनता,
सबक सिखाएगी उनको अब जागृत जनता ।
- ओमप्रकाश तिवारी

Thursday, April 23, 2009

चूका

चूका समझो जन्म का चूक गया जो आज,
गलत व्यक्ति के हाथ में दे बैठा जो राज ।
दे बैठा जो राज कहेगी अगली पीढ़ी ,
बापू जी तो हटा गए चढ़ने की सीढ़ी ।
अगर चाहते हो तुमपर न जाए थूका,
मत देना मत उसे काम से जो है चूका ।
- ओमप्रकाश तिवारी

Wednesday, April 22, 2009

रिफ्यूजी

बात रिफ्यूजी की करें लोग लगें कनफ्यूज,
उड़े दिमागी बल्ब के इनके सारे फ्यूज ,
इनके सारे फ्यूज सगे हैं बंगलादेशी,
देवी जैसी लगे इन्हें हर मेम विदेशी ।
व्यापारी ये वोट के रचते सिर्फ बिसात,
कहते संत कबीर जी मत सुन इनकी बात ।
- ओमप्रकाश तिवारी

सवाल

नेता जी के सामने भले न करो बवाल,
किंतु पूर्व मतदान के कुछ तो करो सवाल ।
कुछ तो करो सवाल आपका हक है भाई,
इसीलिए तो थी हमने सरकार बनाई ।
इस मौसम में आय हमारा मत जो लेता,
क्यों जवाब न दे आखिर हमको वह नेता ।
- ओमप्रकाश तिवारी

और अब चूसे बेटा

साठ साल बीते मगर अब भी हैं मजबूर,
बिजली,पानी,सड़क से जनता कोसों दूर ।
जनता कोसों दूर फले-फूले हैं नेता,
रहा चूसता बाप और अब चूसे बेटा ।
रमिया-राम-रहीम सब बने रहे यदि काठ,
यहीं खड़े रह जाएंगे बरस और भी साठ ।
- ओमप्रकाश तिवारी

काम का धन

काला धन काला सही लेकिन धन है यार,
स्विस बैंक में क्यों सड़े पड़ा-पड़ा बेकार ।
पड़ा-पड़ा बेकार उसे भारत में लाओ,
मत दो हमको खुद ही कुछ उद्योग लगाओ ।
मंदी में जब पिटा जा रहा हो दीवाला,
बड़े काम आ सकता है बंधू धन काला ।
- ओमप्रकाश तिवारी

जंग

जंग जुबानी है कहीं कहीं चले तलवार,
नेता सभी विपक्ष पर करें वार पर वार ।
करें वार पर वार एक-दूजे से ज्यादा,
भूल गए हैं लोग शब्द की भी मर्यादा ।
कटुता के कारण हुआ लोकतंत्र बदरंग,
भूले दुआ-सलाम भी इसे समझकर जंग ।
- ओमप्रकाश तिवारी

बहना

बहना मन में पालती सपनों का संसार,
भाई जो पीएम बने लूं हीरों का हार ।
लूं हीरों का हार और मांगूं भौजाई,
दस जनपथ पर भी बाजे सुमधुर शहनाई ।
भैया राहुल शर्माकर तुम ना न कहना,
मांगे जब यह नेग प्यार से तेरी बहना ।
- ओमप्रकाश तिवारी

Thursday, April 16, 2009

आज का राजा

मतदाता जी आज तो राजा हो बस आप,
चाहो तो धुल जाएंगे भारत के सब पाप ।
भारत के सब पाप नाप लो सबकी आंधी,
ले लो सकल हिसाब हुई है जो बरबादी ।
जात-पांत को भूल काम से रक्खे नाता,
लोकतंत्र का सच्चा प्रहरी वो मतदाता ।
- ओमप्रकाश तिवारी

मौन

कौन कह रहा आपका पीएम है कमजोर,
अडवाणी जी की तरह बोल सके न जोर ।
बोल सके न जोर और न शोर मचाए ,
बस दिल्लीवाली मैडम का हुकुम बजाए ।
मनमोहन जी शोर पर भारी पड़ता मौन,
वरना पीएम आपको भला बनाता कौन ।
- ओमप्रकाश तिवारी

Monday, April 13, 2009

अंग्रेजी

अंग्रेजी के नाम से नेताजी चिढ़ जायं,
लेकिन अपने पुत्र को कान्वेंट पढ़वायं ।
कान्वेंट पढ़वायं बोलता गिटपिट भाषा,
तर जाती है सुन सारे पुरखों की आशा ।
जनता समझ सके न नेताजी की तेजी,
इसीलिए समझाते हौवा है अंग्रेजी ।
- ओमप्रकाश तिवारी

Sunday, April 12, 2009

बुढ़िया

बुढ़िया-बुढ़िया बोलकर मत दो उसको त्रास,
बना स्वीटजरलैंड का खाती च्यवनप्राश ।
खाती च्यवनप्राश अंग भी है बदलाया,
जर्जर काया हेतु रक्त इटली से आया ।
सत्ता का सिंदूर लगाकर दिखती गुड़िया,
रसविहीन मोदी जिसको कहते हैं बुढ़िया ।
- ओमप्रकाश तिवारी

Saturday, April 11, 2009

दोहन

मनमोहन को आप ही कहते रहे महान,
आज मुलायमसिंह को याद आया अपमान ।
याद आया अपमान ज्ञान तब उनको आया,
कांग्रेस से जब मनमाना भाव न पाया ।
कृष्णकाल से जिनकी रोजी-रोटी दोहन,
उनका भी दोहन कर बैठे श्री मनमोहन ।
- ओमप्रकाश तिवारी

संपत्ति का हिसाब

मेरे नेता ने दिया जो संपत्ति हिसाब,
उसके तो सौवांश का हमें न आता ख्वाब ।
हमें न आता ख्वाब यही है डेमोक्रेसी,
राजा जिंदाबाद प्रजा की ऐसी-तैसी ।
प्रजाजनों को सदा दरिद्दर रहता घेरे,
भला बताओ क्या कर सकते नेता मेरे ।
- ओमप्रकाश तिवारी

Thursday, April 9, 2009

बंटी-बबली

बंटी-बबली की तरह राजनीति में लोग,
करते हैं मिल आपको छलने का उद्योग ।
छलने का उद्योग न आती इसमें मंदी,
इसीलिए तो राजनीति कहलाती गंदी ।
अब बिल्ली के गले बांधनी होगी घंटी,
पता तो चले कौन यहां पे बबली-बंटी ।
- ओमप्रकाश तिवारी

काला धन

काला धन पर चल रही चर्चा चारों ओर,
जरा देखिए किस तरह आया कलियुग घोर ।
आया कलियुग घोर बात बेमतलब वाली,
भला लक्ष्मी कैसे हो सकती हैं काली ।
यदि हों अपने पास जपें लक्ष्मी की माला,
दूजे की पाकेट का धन लगता है काला ।
- ओमप्रकाश तिवारी

Wednesday, April 8, 2009

बुलडोजर

भाषा इनकी देखिए और देखिए ज्ञान,
जिनको देने जा रहे देश की आप कमान ।
देश की आप कमान सोचिए मिस्टर वोटर,
करेंगे क्या निर्माण चलाते जो बुलडोजर ।
मन में है विध्वंस करें क्या इनसे आशा,
बोल रहे हैं जो बुलडोजर वाली भाषा ।
- ओमप्रकाश तिवारी

Monday, April 6, 2009

कबूतरबाज

संसद में भेजा उन्हें करने को जन-काज,
एमपी साहब बन गए वहां कबूतरबाज ।
वहां कबूतरबाज उड़ाने लगे चिरैया,
प्रश्न पूछने की खातिर भी लिया रुपैया ।
बदमाशी की इससे ज्यादा क्यो होगी हद,
उड़ीं गड्डियां मंडी बन बैठी जब संसद ।
- ओमप्रकाश तिवारी

दाता आए द्वार

दो रुपए में दे रहा कोई आज अनाज,
देने को तैयार है कोई ऋणमुक्त समाज ।
कोई ऋणमुक्त समाज टैक्स से पूरी छुट्टी,
सभी पिलाने चले आज तो मीठी घुट्टी ।
मतदाता श्रीमान कृपा तुम थोड़ी कर दो,
दाता आए द्वार आज तुम झोली भर दो ।
- ओमप्रकाश तिवारी

Saturday, April 4, 2009

मां का दिल

मां के दिल पर है छिड़ी बहस बड़ी गंभीर,
बहस देखि बहने लगा निज नयनों से नीर ।
निज नयनों से नीर मेनका जी गम साधो,
मत उत्तरप्रदेश से अपना बिस्तर बांधो,
जिससे भिड़ने चलीं वरुण की साधारण मां,
उससे तो डरती हैं हम सबकी भारत मां ।
- ओमप्रकाश तिवारी

Friday, April 3, 2009

दिमाग की लाइट

लाइट, एक्शन, कैमरा, यही आपका काम,
राजनीति में खामखां होते क्यूं बदनाम ।
होते क्यूं बदनाम अरे ओ संजू भाई,
नादानी में कब तक झेलोगे रुसवाई ।
पोजीशन बिजली की माना की है टाइट,
पर दिमाग में तो जल सकती है ना लाइट ।
- ओमप्रकाश तिवारी

राजनीति और अपराध

एक चला था मारने एक ने किया अरेस्ट,
देखो कैसे मिल रहे दोनों के इंट्रेस्ट ।
दोनों के इंट्रेस्ट मिलें ज्यों दामन-चोली,
राजनीति अपराधी की बहना मुंहबोली ।
गली-गली में दिख रहे ये गठजोड़ अनेक,
इनसे कैसे लड़ेगी भारत माता एक ।
- ओमप्रकाश तिवारी

ठोकतंत्र

भाई साहब जेल में भौजी लड़ें चुनाव,
जनता देखे बैठ के राजनीति के दावं ।
राजनीति के दावं करेगा क्या न्यायालय,
अपराधी का खानदान जब है सचिवालय।
लोकतंत्र में ठोकतंत्र की चले दुहाई,
बैठ जेल में भी बंपर जीतेंगे भाई ।
- ओमप्रकाश तिवारी

Tuesday, March 31, 2009

संजू अपराधी

एमपी बनने के लिए लगा रहे थे घात,
न्यायालय की ओर से हुआ तुषारापात ।
हुआ तुषारापात कहा संजू अपराधी ,
नहीं जमेगी तुमपर बापू जी की खादी ।
करवाओ छह साल जेल में जाकर चम्पी,
उसके बाद लगे नंबर तो बनना एमपी ।
- ओमप्रकाश तिवारी

Monday, March 30, 2009

डबल निशाना

माया जी के राज में न्याया देखिए शुद्ध ,
वरुण रासुका में हुए कहि दो शब्द निरुद्ध ।
कहि दो शब्द निरुद्ध बुना यों ताना-बाना,
साध लिया एक तीर छोड़कर डबल निशाना ।
कटने थे जो हाथ उन्हें इक ओर पटाया,
कांग्रेसियों से भी - जय हो - लूटें माया ।
- ओमप्रकाश तिवारी

आंधी

आंधी गांधी की चली वाह वरुण जी वाह ,
नेता बन बैठे मियां करके एक गुनाह ।
करके एक गुनाह आपने मुंह जो खोला,
लगा कोई बच्चा बापू के स्वर में बोला ।
देख वरुण को सोच रहे अब राहुल गांधी,
इस तूफां में दब न जाए अपनी आंधी ।
- ओमप्रकाश तिवारी

Saturday, March 28, 2009

सपूत

पूत महाजन के रहे दे मसले को तूल,
कहें मेरे परिवार को गई भाजपा भूल ।
गई भाजपा भूल हमें समझा नाकारा,
टिकट बहन का भी अब तो है गया नकारा ।
अगर कुछ समय के लिए रहते आप सपूत,
संसद में होते स्वयं आज महाजन पूत ।
- ओमप्रकाश तिवारी

Friday, March 27, 2009

जनता

जनता सुख की चाह में जिनको देती वोट,
सत्ता में आकर वही दे जाते हैं चोट ।
दे जाते हैं चोट रोज बढ़ती महंगाई ,
भूखा मरे गरीब व नेता खायं मलाई ।
लोकतंत्र में बंधु न कोई राजा बनता,
कृपादृष्टि अपनी जब तक न फेरे जनता ।
- ओमप्रकाश तिवारी

गीता का उपदेश

गीता में भगवन् कहें अर्जुन को समझाय,
त्यागो माया-मोह को युद्धभूमि में आय ।
युद्धभूमि में आय जीतना सिर्फ लड़ाई ,
यहां न कोई बहन और न कोई भाई ।
कांग्रेस को चले लगाने वरुण पलीता,
सुनो प्रियंका भाई ने पढ़ ली है गीता ।
- ओमप्रकाश तिवारी

Wednesday, March 25, 2009

अर्थशास्त्री मनमोहन

मनमोहन और सोनिया कह गए आकर साथ,
आम आदमी के लिए कांग्रेस का हाथ ।
कांग्रेस का हाथ बात में है सच्चाई ,
खाकर तगड़ा हाथ गाल सहलाओ भाई ।
देकर लालीपाप करें जनता का दोहन,
कितने अच्छे अर्थशास्त्री हैं मनमोहन ।
- ओमप्रकाश तिवारी

Tuesday, March 24, 2009

मतदाता

मतदाता के द्वार पर लंबी लगी कतार,
कोई खुशामद कर रहा करे कोई मनुहार ।
करे कोई मनुहार लिये मक्खन की टिकिया,
हाथ जोड़कर खड़े कई नेता नौसिखिया ।
पांच बरस में एक बार मौसम यह आता,
साक्षात प्रभु रूप में जब दिखता मतदाता ।
-ओमप्रकाश तिवारी

साले साहब

साले साहब को दिया लालू ने दुत्कार ,
बहन सहारा न बनी टूटे दिल के तार ।
टूटे दिल के तार दे रहे साधू ताने ,
दस जनपथ की ओर चले राखी बंधवाने ।
पड़ जाती है गले मुसीबत बैठे ठाले,
मिल जाएं यदि साधू यादव जैसे साले ।
- ओमप्रकाश तिवारी

Monday, March 23, 2009

कैसे जमेगा दही

रही न अब वह दोस्ती रहा न अब वो प्यार ,
बिखरा-बिखरा सा लगे यूपीए परिवार ।
यूपीए परिवार दगा दे बैठे लालू ,
ये दिल मांगे मोर पवार कहें बन चालू ।
फटे दूध से भला किस तरह जमेगा दही,
दस जनपथ की मलिका बैठी सोच ये रही ।
- ओमप्रकाश तिवारी

Sunday, March 22, 2009

एक फार्मूला

एक फार्मुला है गजब जांच सके जांच ,
पीएम चुन ले एक को डिप्टी पीएम पांच ।
डिप्टी पीएम पांच नाच होगा अलबेला,
आएगी जब थर्ड फ्रंट पीएम की बेला ।
मस्त स्वयंवर होएगा दूल्हा लिये अनेक,
कुर्सी सोचेगी भला चुनूं कौन सा एक ।
- ओमप्रकाश तिवारी

Friday, March 20, 2009

वरुण की तरुणाई

तरुणाई में हैं वरुण सम्हले नहीं ज़ुबान ,
उधर चुनाव आयोग भी खोल के बैठा कान ।
खोल के बैठा कान फंसेंगे अब प्रत्याशी,
जो नादानी में कर बैठेंगे बदमाशी ।
तोल-तोल कर बोल बोल है महंगा भाई,
राजनीति में गच्चा खा जाती तरुणाई ।
-ओमप्रकाश तिवारी

मुन्नाभाई

मुन्ना भाई कह रहे नगर लखनऊ जाय,
संसद में भिजवाइये हमें वोट दिलवाय ।
हमें वोट दिलवाय करूंगा सबकी सेवा ,
लिया करूंगा आप सभी के बीच कलेवा ।
पर सोचे लखनऊ अजब है ये झुनझुन्ना,
कहां अटल का क्षेत्र कहां ये भाई मुन्ना ।
- ओमप्रकाश तिवारी

Thursday, March 19, 2009

माया का डिनर

माया जी का डिनर तो रहा सनसनीखेज,
रही कमी बस एक ही नमक हो गया तेज ।
नमक हो गया तेज पड़ा सबको वह खाना,
उससे भी मुश्किल है उसका फर्ज निभाना ।
कामरेड ने चटखारें लेकर जो खाया ,
बच्चू इक दिन उसे वसूलेंगी अब माया ।
- ओमप्रकाश तिवारी

Wednesday, March 18, 2009

गठबंधन

गठबंधन का दौर है सभी रहे हैं दौड़,
सत्ता मूल विचार है बाकी सबकुछ गौण ।
बाकी सबकुछ गौण देश की फिक्र न पालो,
किसी तरह से संसद की कुर्सी हथिया लो ।
कुर्सी के हित करिये बैरी का भी वंदन ,
लिव इन रिलेशनशिप हैं ये सारे गठबंधन ।
- ओमप्रकाश तिवारी

थर्ड फ्रंट

उत्तर-दक्षिण मिल रहे पूरब-पश्चिम साथ,
अंधे लगे टटोलने अब लंगड़ों का हाथ ।
अब लंगड़ों का हाथ न माया जाय बखानी,
सच पूछो तो थर्ड फ्रंट की यही कहानी ।
कितने दिन तक साथ रहेंगे ये सब पुत्तर,
है अखंड यह प्रश्न बताए कोई उत्तर ।
- ओमप्रकाश तिवारी

Sunday, March 15, 2009

रणभेरी

रणभेरी फिर बज उठी लोकतंत्र के गांव ,
जिसे देश के लोग हैं कहते आम चुनाव ।
कहते आम चुनाव और बनकर मतदाता,
चुनते हैं सब मिलकर अपना भाग्यविधाता ।
बढ़िया-बढ़िया चुनो लगी है आगे ढेरी ,
तभी सफल होगी चुनाव की ये रणभेरी ।
- ओमप्रकाश तिवारी