Sunday, February 16, 2014

बात बहादुर

बात बहादुर हर जगह अपनी बात बनायं,
अनजानों के बीच भी अपनों से घुस जायं।
अपनों से घुस जायं बतकही लंबी झाड़ें,
झूठी-सच्ची गाय स्वयं का झंडा गाड़ें।
टर्राते इस भाँति मेघ ऋतु जैसे दादुर,
अपना काम निकाल खिसकते बात बहादुर।
- ओमप्रकाश तिवारी

जिसकी लाठी उसकी भैंस

लाठी जिसके हाथ में समझो उसकी भैंस,
बची-खुची जो है कसर पूरा करती कैश।
पूरा करती कैश इन्हीं दोनों का जलवा,
ये दो जिनके पास खाय वो पूड़ी-हलवा।
आदिकाल से देख रहे हैं ये परिपाटी,
राखो थैली कैश और हाथों में लाठी ।
- ओमप्रकाश तिवारी