Saturday, November 21, 2009

ताज नहीं, सारी दुनिया का दिल दहलाने आए थे

ताज नहीं, सारी दुनिया का
दिल दहलाने आए थे,
पाकिस्तानी फिर से अपनी
जात दिखाने आए थे ।

लोग चले थे गांव-देश की
माटी की सुधि लाने को,
किसे पता था वो निकले हैं
मिट्टी में मिल जाने को ।
इंतजार था अपने घर की
गाड़ी में चढ़ जाने का,
तड़-तड़-तड़-तड़ मौत आ गई
यम के घर ले जाने को ।

बेकसूर-निर्दोषों पर वे
कहर ढहाने आए थे ।
पाकिस्तानी फिर से अपनी
जात दिखाने आए थे ।

ए.के.47 जब गरजी
हर मजहब का खून बहा,
किसी के मुंह से निकला अल्ला
और किसी ने राम कहा ।
वीटी,ताज,नरीमन हाउस
एक रंग में नहा उठे,
लहू बहा सबका धरती पर
कहीं न कोई भेद रहा ।

सच पूछो तो भारत मां का
खून बहाने आए थे ।
पाकिस्तानी फिर से अपनी
जात दिखाने आए थे ।

खून बहे मां का तो
बेटा कैसे देखे खड़े-खड़े,
झिल्लू यादव छीन राइफल
शैतानों से जूझ पड़े ।
उनकी हिम्मत देख साथियों
की भी जब हिम्मत जागी,
भाड़े के टट्टू तुरंत ही
हुए वहां से भाग खड़े ।

ज़िंदादिल जुनून से कुछ
कायर टकराने आए थे ।
पाकिस्तानी फिर से अपनी
जात दिखाने आए थे ।

लड़ा सामने से वह जब-जब
उसको मिली करारी हार,
इसीलिए करता है अब वह
छुप करके पीछे से वार ।
दहशतगर्दी के आलम में
डरे-डरे से हम बैठे,
बिना नियम का युद्ध हो रहा,
बच्चों-बूढ़ों का संहार ।

बुरा न मानो बेहोशी से
हमें जगाने आए थे ।
पाकिस्तानी फिर से अपनी
जात दिखाने आए थे ।

सागर की सरहद पर बैठा
गद्दारों का डेरा है ,
चप्पे-चप्पे को आतंकी
एजेंटों ने घेरा है ।
वरना कैसे यहूदियों के
घर का पता उन्हें चलता,
जाहिर है दुश्मन के घर में
बैठा कोई मेरा है ।

तभी तो सागर के रस्ते से
सेंध लगाने आए थे ।
पाकिस्तानी फिर से अपनी
जात दिखाने आए थे ।

जोर-जोर से शोर मचाया
हिंदू दहशतगर्दी का,
चालाकी से ध्यान बंटाया
उसने खाकी वर्दी का ।
प्रज्ञा, पांडे और पुरोहित
के तारों में उलझी थी,
हुई शिकार स्वयं एटीएस
जेहादी बेदर्दी का ।

बुनकर जाल हमारे घर में
हमें फंसाने आए थे ।
पाकिस्तानी फिर से अपनी
जात दिखाने आए थे ।

दहशतगर्दी के कारण ही
हम आपस में मरते हैं ।
हिंदू-मुस्लिम एक-दूसरे
पर टिप्पणियां करते हैं ।
संग समय के घाव पुराना
जब-जब भरने लगता है,
ये दहशतपसंद आ करके
नया घाव फिर करते हैं ।

दो कौमों के बीच फासला
और बढ़ाने आए थे ।
पाकिस्तानी फिर से अपनी
जात दिखाने आए थे ।

साठ बरस की आजादी पर
भारी थे वे घंटे साठ,
सच्चे भारतवासी हो तो
मन में बांधो अपने गांठ ।
सफल न होने देंगे साजिश
भारत में गद्दारों की,
कसम शहीदों की है तुमको
इस घटना से सीखो पाठ ।

मिटा के रखेंगे उनको
जो हमें मिटाने आए थे ।
पाकिस्तानी फिर से अपनी
जात दिखाने आए थे ।

( एक रिपोर्टर के रूप में 26 नवंबर , 2008 के आतंकी हमले की लगभग सभी घटनाओं को प्रत्यक्ष देखने और अनुभव करने के बाद यह कविता मैंने लिखी थी । इसका प्रथम पाठ फैजाबाद की नाका मुज़फरा स्थित हनुमान गढ़ी के कवि सम्मेलन में 16 दिसंबर,2008 को किया गया था )