Monday, March 23, 2009

कैसे जमेगा दही

रही न अब वह दोस्ती रहा न अब वो प्यार ,
बिखरा-बिखरा सा लगे यूपीए परिवार ।
यूपीए परिवार दगा दे बैठे लालू ,
ये दिल मांगे मोर पवार कहें बन चालू ।
फटे दूध से भला किस तरह जमेगा दही,
दस जनपथ की मलिका बैठी सोच ये रही ।
- ओमप्रकाश तिवारी

2 comments:

  1. दही बने न बने....खोया तो बनेगा....फिर मैडम गायेंगी...."खोया खोया चाँद...खुला आसमान..."
    चनाव में चूँ चूँ के मुरब्बे जैसी सरकार बनेगी...नज़र आ रहा है...
    नीरज

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  2. भाई नीरज जी धन्यवाद ।
    उत्साह बढ़ाते रहें ।

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