जियो धुरंधर आजम खान !
राजनीति के चतुर खिलाड़ी,
चालें चलते बेड़ी - आड़ी,
दुश्मन तो दुश्मन होता है,
अपनों पर भी चले कुल्हाड़ी ;
करते वो जो लेते ठान !
वो चाहें तो नगर जला दें,
यूपी क्या वह देश हिला दें,
रामपुरी चाकू चलवाकर,
शांति व्यवस्था ख़ाक मिला दें;
शहर बना दें वह श्मशान !
एक इशारे पर हो दंगा,
अफसर को कर देते नंगा,
खुद कठोर दिलवाले बनकर,
रोज मुलायम से लें पंगा ;
बात-बात पर खींचें कान !
डरते हैं उनसे अखिलेश,
कहीं खड़ा न कर दें क्लेश,
ऐसा नेता पैदा करके.
भुगत रहा है सारा देश ;
इंसानी तन में शैतान !
बनते जिनके परम हितैषी,
करते उनकी ऐसी-तैसी,
खड़ा मुजफ्फरनगर सामने,
कथा बयान कर रहा जैसी ;
इनके लिए खिलौना जान !
दंगे एक सौ सात हो गए,
कहीं-कहीं बेबात हो गए,
राजनीति की कुटिल चाल में,
बच्चे कई अनाथ हो गए;
अब तो लो इनको पहचान
(यह कविता आजतक चैनल पर इस खुलासे के बाद लिखी गई कि मुजफ्फरनगर के दंगे आजमखान के ही इशारे पर हुए थे)
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