दिल्ली दीदी को गई कितनी जल्दी भूल,
गरियाया, कपड़े फटे चेहरे पर थी धूल ।
चेहरे पर थी धूल वाह मनमोहन भाई,
घर आए मेहमान को क्या औकात दिखाई !
जब तक थीं वह साथ बने रहते थे बिल्ली,
खींच लिया जब हाथ लगी गुर्राने दिल्ली।
गरियाया, कपड़े फटे चेहरे पर थी धूल ।
चेहरे पर थी धूल वाह मनमोहन भाई,
घर आए मेहमान को क्या औकात दिखाई !
जब तक थीं वह साथ बने रहते थे बिल्ली,
खींच लिया जब हाथ लगी गुर्राने दिल्ली।
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