बात बहादुर हर जगह अपनी बात बनायं,
अनजानों के बीच भी अपनों से घुस जायं।
अपनों से घुस जायं बतकही लंबी झाड़ें,
झूठी-सच्ची गाय स्वयं का झंडा गाड़ें।
टर्राते इस भाँति मेघ ऋतु जैसे दादुर,
अपना काम निकाल खिसकते बात बहादुर।
- ओमप्रकाश तिवारी
अनजानों के बीच भी अपनों से घुस जायं।
अपनों से घुस जायं बतकही लंबी झाड़ें,
झूठी-सच्ची गाय स्वयं का झंडा गाड़ें।
टर्राते इस भाँति मेघ ऋतु जैसे दादुर,
अपना काम निकाल खिसकते बात बहादुर।
- ओमप्रकाश तिवारी